भगवान कहाँ है

भगवान कहाँ है 

एक बार एक गुरुजी ने अपने दो शिष्यो को एक , एक पुड़िया दी और कहा इसे किसी ऐसी जगह ले जाकर खोलना जहाँ कोई भी न हो 

दोनों ही शिष्य वहाँ से निकले एक शिष्य तो आश्रम के पीछे वाले स्थान में गया और दीवार के पीछे छुपा आसपास देखा कोई है तो नही और चुप चाप वो पुड़िया खोल ली दूसरा शिष्य निकल पड़ा किसी ऐसी जगह की खोज में जहाँ कोई भी न हो वो हर जगह गया जंगल , पहाड़ , निर्झर , गुफाओं में हर जगह गया पर उसे ऐसी कोई जगह नही मिली जहां कोई न हो प
वर्ष भर घूमने के पश्चात भी उसे कोई ऐसी जगह नही मिली 
अन्ततः वो शिष्य पुड़िया वापस लेकर गुरु जी के पास आया दोनों शिष्य सामने खड़े हो गए पहले को देख कर गुरुजी जी ने कहा तुमने तो पहले ही खोल लिया था शिष्य ने बड़े उत्साह से कहाँ जी गुरुजी जी मैं जीत गया 
गुरुजी ने कहा तुम्हे शर्त पता थी न शिष्य ने कहा है गुरुजी जहाँ कोई भी न हो वहाँ खोलना था तभी तो मैं आश्रम के पीछे की दीवार के पास गया था गुरुजी ने दूसरे शिष्य से पूछा और तुम .
उस शिष्य ने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी गुरुजी मैं अब तक वो पुड़िया नही खोल पाया वर्ष भर इधर उधर ढूंढने के पश्चात भी मुझे कोई ऐसी जगह नही मिली जंहा कोई न हो गुरुजी ने कहा तो क्या तुम्हें कोई ऐसी जगह नही मिली जहाँ कोई न हो शिष्य ने कहा नही गुरुजी मुझे हर जगह कोई न कोई मिला और जँहा कोई भी नही था वहाँ परमात्मा थे 

हरि व्यापक सर्वत्र समाना ,प्रेम ते प्रकट होइ मैं जाना 

इस दुनिया मे ऐसी कोई भी जगह नही जहाँ परमात्मा न हो ये पूरी सृष्टि परमात्मा से लीन है गुरुजी ने शिष्य को गले से लगा कर कहा वास्तव में बिना उस पुड़िया को खोले ही तुमने विजय प्राप्त कर ली और दिव्य ज्ञान को प्राप्त कर लिया । 

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