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आज क्यों नहीं ?

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एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन  वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश  करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि  अपने पर्यावरण के प्रति  भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में प

नही चाहिए आजादी ..

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आजादी आजादी आजादी    कहने को एक छोटा सा शब्द है पर इसके लिए जाने क्या क्या कर जाते है लोग आज सुबह की ही बात है मैंने पंछियों के झुंड को उड़ता देखा बड़ा आनंद मिला सोचा कितने खुश है ये मन ने जवाब दिया क्योंकि ये आजाद है शायद इसलिए फिर 1 और प्रश्न आया क्या मनुष्य अपनी आजादी की मांग करे तो वो सही है ? फिर समझ मे आया नही यही तो अंतर है मनुष्य में और जीवों ने मनुष्य का जीवन खुद को आजाद करके चीजो से मुख मोड़ने के लिए नही बल्कि दुसरो के जीवन को खुशियो से भरने के लिए हुआ है   स्वतंत्रता दिवस हमने मना लिया देश आजाद भी है पर आज भी आंतरिक आजादी के लिए लोग लड़ते रहते है  अब प्रश्न ये है कि हमे केसी आजादी चाहिए और किससे चाहिए मैंने तो देश मे रह रहे लोगो से सुना कि भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार मतलब जिस देश की आजादी के किये भारत माता के वीर हंसते हँसते शहीद हो गए आज उसी आजाद देश को टुकड़े टुकड़े करने वाले देश को तोड़ कर आजादी की मांग कर रहे है ये कौन से युग मे जीना चाहते है हम ये कैसी आजादी जो माँ से बेटे को दूर करदे भाई को बहन से पति से पत्नी से भारत माता को उनके पुत्रो से  क्या हम सच में आजादी मा

भगवान कहाँ है

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भगवान कहाँ है  एक बार एक गुरुजी ने अपने दो शिष्यो को एक , एक पुड़िया दी और कहा इसे किसी ऐसी जगह ले जाकर खोलना जहाँ कोई भी न हो  दोनों ही शिष्य वहाँ से निकले एक शिष्य तो आश्रम के पीछे वाले स्थान में गया और दीवार के पीछे छुपा आसपास देखा कोई है तो नही और चुप चाप वो पुड़िया खोल ली दूसरा शिष्य निकल पड़ा किसी ऐसी जगह की खोज में जहाँ कोई भी न हो वो हर जगह गया जंगल , पहाड़ , निर्झर , गुफाओं में हर जगह गया पर उसे ऐसी कोई जगह नही मिली जहां कोई न हो प वर्ष भर घूमने के पश्चात भी उसे कोई ऐसी जगह नही मिली  अन्ततः वो शिष्य पुड़िया वापस लेकर गुरु जी के पास आया दोनों शिष्य सामने खड़े हो गए पहले को देख कर गुरुजी जी ने कहा तुमने तो पहले ही खोल लिया था शिष्य ने बड़े उत्साह से कहाँ जी गुरुजी जी मैं जीत गया  गुरुजी ने कहा तुम्हे शर्त पता थी न शिष्य ने कहा है गुरुजी जहाँ कोई भी न हो वहाँ खोलना था तभी तो मैं आश्रम के पीछे की दीवार के पास गया था गुरुजी ने दूसरे शिष्य से पूछा और तुम . उस शिष्य ने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी गुरुजी मैं अब तक वो पुड़िया नही खोल पाया वर्ष भर इधर उधर ढूंढने के पश्चात भी मुझे कोई ऐसी

स्वतंत्रता दिवस

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 स्वतंत्रता दिवस     हृदय गदगद हो जाता यह विचार करके भी की हम भारत वासी है  इस देश की संस्कृति इस देश की सभ्यता यहां की भाषा यहां का परिवेश सबकुछ आत्मिकता से भरा हुआ है परंतु इस सुखी संपन्न देश में जहाँ के कण कण से प्रेम प्रमुदिता के भाव मिलते है उसी देश मे आजादी के 74 साल बाद भी क्या हम आजाद है  करें स्वागत किस तरह हम तेरा ये जश्ने आजादी  खड़े है सामने कितने दहकते प्रश्न बुनियादी  उगी आंखों में बेचैनी अधर पर मौन ठहरा है  यहाँ कुछ बंधुओ में मजअबी उन्माद गहरा है हवा में कपकपी इंसान खून में सन रहें होंगे  अभी बारूद के बादल कही पर बन रहें होंगे  कहीं षड्यंत्र की मल्लिका मल्हारे गा रही होगी  कोई टोली किसी का कत्ल करने जा रही होगी  कही है ग्रास हंसो का कौवे छीन ले जाएं  कोई मजबूर कचरे से दाने बीन कर खाएं